Niraj Pandey

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ताज कहाँ से लाऊँ

हर बार तुम्हारी  बातों का  मैं  जवाब कहाँ से लाऊँ
अमावस की काली रातों में मैं आफ़ताब कहाँ से लाऊँ 

जाने कितनी सदियां गुजरी हैं जी भरकर सोए हुए 
आँखों मे जब नींद नही है तो मैं ख्वाब कहाँ से लाऊँ 

दिल के तारो को जो छेड़े मैं वो साज कहाँ से लाऊँ
उनके होंठों की धुन बन जाए वो अल्फ़ाज़ कहाँ से लाऊँ 

जाने  कबसे  रूठे बैठे  हैं वो  हमसे नाराज  हुए  हैं
मैं कुछ कर दूँ उनको भा जाए वो अंदाज़ कहाँ से लाऊँ

कल कल कर के बहती नदियों की वो धार कहाँ से लाऊँ 
छपती हों बस प्यार की खबरें वो अखबार कहाँ से लाऊँ

बीच राह में छोड़ गए हो प्यार भरा दिल  तोड़ गए हो 
अब भी पार लगा दे कश्ती वो पतवार कहाँ से लाऊँ 

फिर से हंसकर जीने का वो अंदाज़ कहाँ से लाऊँ 
बिन बोले तुझ तक जो पहुँचे वो आवाज़ कहाँ से लाऊँ 

कब से खाली हाथ खड़े हम इन इश्क की गलियों में
दिल की दौलत लूट के ला दे वो रँगबाज़ कहाँ से लाऊँ 

जो केवल आँखों मे दफन हों ऐसे राज कहाँ से लाऊँ 
कल ही सब कुछ लुटा चुका हूँ फिर मैं आज कहाँ से लाऊँ 

हाथ बढ़ाकर तोड़ रहा हूँ बगिया से कुछ फूलों को
महबूब के सर पर जो सज जाए मैं वो ताज कहाँ से लाऊँ😊

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7 Comments

वाह बन्धु वाह 👌👌👌👌 बहुत ही बेहतरीन रचना

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Vfyjgxbvxfg

25-Jun-2021 10:41 PM

Behad khoobsurat rchna

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Niraj Pandey

25-Jun-2021 11:30 PM

धन्यवाद😊🙏

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Satendra Nath Choubey

25-Jun-2021 08:16 PM

मनमोहक गीत

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Niraj Pandey

25-Jun-2021 11:30 PM

धन्यवाद😊🙏

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